​पत्थर के जिगर वालों

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​पत्थर के जिगर वालों...
पत्थर के जिगर वालों गम में वो रवानी है
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है
उस में तेरी जुल्फों की बेतरतीब कहानी है
इक जहने परेशां में वो फूल सा चेहरा है
पत्थर की हिफाज़त में शीशे की जवानी है
क्यों चाँदनी रातों में दरिया पे नहाते हो
सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है
इस हौसले दिल पर हम ने भी कफ़न पहना
हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गंवानी है
रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है
आँसूं कभी शीशा है आँसूं कभी पानी है..

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