मेरी रातों की राहतमेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जानातुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जानातुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोईतुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जानाशिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लोअगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना;तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकतेपुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जानाइरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने कातो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जानाअगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पीतो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना
मेरी रातों की राहतमेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जानातुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जानातुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोईतुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जानाशिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लोअगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना;तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकतेपुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जानाइरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने कातो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जानाअगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पीतो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना
किस को क़ातिल मैं कहूँकिस को क़ातिल मैं कहूँ..किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँसब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूवो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता थाअब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँदिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठेऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवीलुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगेगुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगेगुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगेमेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्सउस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगेमैं इस लिये मनाता नहीं वस्ल की ख़ुशीमेरे रक़ीब की न मुझे बददुआ लगेवो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनोंजो मुस्कुरा के बात करे आश्ना लगेतर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उस की अदा 'क़तील'मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे।
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हमकुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हमउस निगाह-ए-आशना को क्या समझ बैठे थे हमरफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गयेवाह री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हमहोश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकीइश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हमबेनियाज़ी को तेरी पाया सरासर सोज़-ओ-दर्दतुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हमभूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्तीउस को भी अपनी तबीयत का समझ बैठे थे हमहुस्न को इक हुस्न की समझे नहीं और ऐ 'फ़िराक़'मेहरबाँ नामेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों मेंमोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों मेंरहा करती है शादाबी ख़ज़ाँ के भी महीनों मेंज़िया-ए-महर आँखों में है तौबा मह-जबीनों मेंके फ़ितरत ने भरा है हुस्न ख़ुद अपना हसीनों मेंहवा-ए-तुंद है गर्दाब है पुर-शोर धारा हैलिए जाते हैं ज़ौक-ए-आफ़ियत सी शय सफीनों मेंमैं उन में हूँ जो हो कर आस्ताँ-ए-दोस्त से महरूमलिए फिरते हैं सजदों की तड़प अपनी जबीनों मेंमेरी ग़ज़लें पढ़ें सब अहल-ए-दिल और मस्त हो जाएँमय-ए-जज़्बात लाया हूँ मैं लफ़्ज़ी आब-गीनों में