तमाम उम्र मेरी ज़िंदगीतमाम उम्र मेरी ज़िंदगतमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआहुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआकई थे लोग किनारों से देखने वालेमगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआहमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपनेउन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआरहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों मेंयही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआलगी जो आग तो सोचा उदास जंगल नेहवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआमुझे मलाल बहुत टूटने का है लेकिनकरूँ मैं किससे गिला जब मुझी से कुछ न हुआ।
मिलने को तो ज़िंदगी मेंमिलने को तो ज़िंदगी में..मिलने को तो ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिलेपर उनकी तबियत से अपनी तबियत नही मिली;चेहरों में दूसरों के तुझे ढूंढते रहे दर-ब-दरसूरत नही मिली, तो कहीं सीरत नही मिली;बहुत देर से आया था वो मेरे पास यारों;अल्फाज ढूंढने की भी मोहलत नही मिली;तुझे गिला था कि तवज्जो न मिली तुझे; मगर हमको तो खुद अपनी मुहब्बत नही मिली;.हमे तो तेरी हर आदत अच्छी लगी "फ़राज़"पर अफ़सोस तेरी आदत से मेरी आदत नही मिली।
रहे जो ज़िंदगी में ज़िंदगी का आसरा हो कररहे जो ज़िंदगी में ज़िंदगी का आसरा हो करवही निकले सरीर-आरा क़यामत में ख़ुदा हो करहक़ीक़त-दर-हक़ीक़त बुत-कदे में है न काबे मेंनिगाह-ए-शौक़ धोखे दे रही है रहनुमा हो करअभी कल तक जवानी के ख़ुमिस्ताँ थे निगाहों मेंये दुनिया दो ही दिन में रह गई है क्या से क्या हो करमेरे सज़्दों की या रब तिश्ना-कामी क्यों नहीं जातीये क्या बे-ए'तिनाई अपने बंदे से ख़ुदा हो करबला से कुछ हो हम 'एहसान' अपनी ख़ू न छोड़ेंगेहमेशा बेवफ़ाओं से मिलेंगे बा-वफ़ा हो कर
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्तग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्तवो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
ज़िंदगी की हर एक उड़ान बाकी हैज़िंदगी की हर एक उड़ान बाकी हैहर मोड़ पर एक इम्तिहान बाकी हैअभी तो सिर्फ़ आप ही परेशान है मुझसेअभी तो पूरा हिन्दुस्तान बाकी है
तु ही बता ए ज़िंदगीतु ही बता ए ज़िंदगीइस ज़िंदगी का क्या होगाकि हर पल मरने वालों कोजीने के लिए भी वक़्त नहीं