रहे जो ज़िंदगी में ज़िंदगी का आसरा हो करवही निकले सरीर-आरा क़यामत में ख़ुदा हो करहक़ीक़त-दर-हक़ीक़त बुत-कदे में है न काबे मेंनिगाह-ए-शौक़ धोखे दे रही है रहनुमा हो करअभी कल तक जवानी के ख़ुमिस्ताँ थे निगाहों मेंये दुनिया दो ही दिन में रह गई है क्या से क्या हो करमेरे सज़्दों की या रब तिश्ना-कामी क्यों नहीं जातीये क्या बे-ए'तिनाई अपने बंदे से ख़ुदा हो करबला से कुछ हो हम 'एहसान' अपनी ख़ू न छोड़ेंगेहमेशा बेवफ़ाओं से मिलेंगे बा-वफ़ा हो कर
This is a great ज़िंदगी की शायरी.