बेटियाँ घर में संगीत की तरह होती हैं ! जब वो बोलती हैं बिना रोक टोक के बोलती हैं! सभी बोलते हैं " चुप भी करो " और जब वो मौन होती हैं, माँ कहती है " तबीयत ठीक है ना लाडो " पिता कहता है " आज घर में ख़ामोशी क्यों है " भाई कहता है " नाराज़ हो कया " और जब उसकी शादी हो जाती है सभी कहते हैं "ऐसा लगता है घर की रौनक ही चली गई है " निःसंदेह बेटियां घर में अनथक संगीत की तरह हैं !! "सभी नन्हीं , सुन्दर ,भावुक,आज्ञाकार ी एवं होनहार बेटियों को समर्पित !
मौत के पास भी जाकर देखा है, मैने भी दिल लगा कर देखा है! चाँद को लोग दुर से देखते है, मैने चाँद को पास बुला कार देखा है! इश्क की कीमत पुँछ लो मुझसे, मैने घर तक लुटा कर देखा है! प्यार तो भीख मेँ भी मिल जाता है, मैने तो दामन को भी फैला कर देखा है ! एक शंक्स है जो भुलता नही मुझसे... मैने सारी दुनियाँ को भुला कर देखा है...!
{ मेरा बचपन का शमां} ↓↓↓↓↓↓↓↓↓↓↓↓↓↓↓ वो भी क्या दिन थे, ↓↓ जब मम्मी का प्यार. और पापा का कन्धा, ↓↓ ना पैसोँ की सोच, ना फतुर के सपने, ↓↓ न कल की चिन्ता, ना जिन्दगी के कुन्दे, ↓↓ पर अब कल की है चिन्ता, और अधुरे है सपने, ↓↓ सपनोँ को ढुन्डते-ढुन्डते कहाँ आ कये हम, ↓↓ आखिर...... इतने बडे क्युँ हे कये हम..!↓
ख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए किसी का नाम लूँ लब पे तुम्हारा नाम आए। कुछ इस तरह से जिए ज़िन्दग़ी बसर न हुई तुम्हारे बाद किसी रात की सहर न हुई सहर नज़र से मिले ज़ुल्फ़ ले के शाम आए। ख़ुद अपने घर में वो मेहमान बन के आए हैं सितम तो देखिए अनजान बन के आए हैं हमारे दिल की तड़प आज कुछ तो काम आए। वही है साज़ वही गीत है वही मंज़र हर एक चीज़ वही है नहीं है तुम वो मगर उसी तरह से निग़ाहें उठें, सलाम आए।dख़ुदा करे कि मोहब्बत में ये मक़ाम आए किसी का नाम लूँ लब पे तुम्हारा नाम आए। कुछ इस तरह से जिए ज़िन्दग़ी बसर न हुई तुम्हारे बाद किसी रात की सहर न हुई सहर नज़र से मिले ज़ुल्फ़ ले के शाम आए। ख़ुद अपने घर में वो मेहमान बन के आए हैं सितम तो देखिए अनजान बन के आए हैं हमारे दिल की तड़प आज कुछ तो काम आए। वही है साज़ वही गीत है वही मंज़र हर एक चीज़ वही है नहीं है तुम वो मगर उसी तरह से निग़ाहें उठें, सलाम आए।
पानी में नमक घोलकर रोटी खिलाती थी माँ बड़ी ही गरीब थी मगर फर्ज निभाती थी माँ... रूखे -सूखे ने पैदा की सनक काम करने की अनजाने में नमक का मोल स fखाती थी माँ... पोल न खुल जाए रोज रोज भूखा सोने की करवट बदलने में कितना हिचकिचाती थी माँ... सभी को मिल जाती थी फुरसत सुस्ताने की पूरे घर का बोझ अपने कंधों पे उठाती थी माँ... फटे हुए टांट पर भी आ जाती थी नींद खुरदुरे हाथ से मेरी पीठ सहलाती थी माँ...
आप भी हैं,हम भी हैं, ऊपर तारे नीचे जमीं हैं। दिल बेरंग है तो क्या, यारो शाम तो रंगीन है। दुनिया का क्या ये तो जवां है, पर है थकी थकी,रवानी कहां है। गर खुद पर यकीन है, तो दुनिया हसीन है। कुछ तरस खा ले,जरा चढ़ा ले, हसीना ना सही, जाम तो हसीन है।
इस जिन्दगी की आरजू यही है यही है साधना, आराधना, मिलना और बिछड़ना। मैं न कांच हूं, न पत्थर, न कोई कांटा सादगी अपनी बन्दगी है, नाजुक भावना। जान से ज्यादा चाहते हैं हम आपको हर खुशी से बढ़कर है मेरी तेरी चाहना। सोचता हूं कैसे मैं तेरी मांग सजाऊं तुम कुमारी महलों की दुश्मन है जमाना।
बेटियाँ घर में संगीत की तरह होती हैं ! जब वो बोलती हैं बिना रोक टोक के बोलती हैं! सभी बोलते हैं " चुप भी करो " और जब वो मùb094cन होती हैं, माँ कहती है " तबीयत ठीक है ना लाडो " पिता कहता है " आज घर में ख़ामोशी क्यों है " भाई कहता है " नाराज़ हो कया " और जब उसकी शादी हो जाती है सभी कहते हैं "ऐसा लगता है घर की रौनक ही चली गई है " निःसंदेह बेटियां घर में अनथक संगीत की तरह हैं !! "सभी नन्हीं , सुन्दर , भावुक, आज्ञाकार ी एवं होनहार बेटियों को समर्पित !
ना तसवीर है तुम्हारी जो दीदc7093eर किया जाये; ना तुम हो पास जो प्यार किया जाये; ये कौन सा दर्द दिया है तुमने ऐ सनम; ना कुछ कहा जाये, ना तुम बिन रहा जाये।
सह लिया हर दर्द हमने हस्ते -२ उजड़ गया घर मेरा য92cस्ते -२ अब वफ़ा करे तो किस से करे यारो वफ़ा करने गए तो बेवफा ही मिले रास्ते -२
आप भी हैं, हम भी हैं, ऊपर तारे नीचे जमीं हैं। दिल बेरंग है तो क्या, यारो शाम तो रंगीन है। दुनिया का क्या ये तो जवां है, पर है थकी थकी,रवानी कहां है। गर खुद पर यकीन है, तो दुनिया हसीन है। कुछ तरस खा ले,जरा चढ़ा ले, हसीना ना सही, जाम तो हसीन है।
इस जिन्दगी की आरजू यही है यही है साधना, आराधना, मिलना और बिछड़ना। मैं न कांच हूं, न पत्थर, न कोई कांटा सादगी अपनी बन्दगी है, नाजुक भावना। जान से ज्यादा चाहते हैं हम आपको हर खुशी से बढ़कर है मेरी तेरी चाहना। सोचता हूं कैसे मैं तेरी मांग सजाऊं तुम कुमारी महलों की दुश्मन है जमाना।