इस जिन्दगी की आरजू यही है
यही है साधना,
आराधना,
मिलना और बिछड़ना।
मैं न कांच हूं,
न पत्थर,
न कोई कांटा
सादगी अपनी बन्दगी है,
नाजुक भावना।
जान से ज्यादा चाहते हैं
हम आपको हर खुशी से बढ़कर है
मेरी तेरी चाहना।
सोचता हूं कैसे मैं तेरी मांग सजाऊं
तुम कुमारी महलों की दुश्मन है जमाना।