कभी लगता है वो हमे सत्ता रहे है कभी लगता की वो करीब आ रहे है कुछ लोग होंतें है आंसुओ की तरह पता है नही लगता साथ दे रहे है या छोड़ कर जा रहें है ....
वो अंजुमन की आग में लिपटे हुए तारे आँसू के चिरागों से सुलगते नज़ारे आसमान की नज़र में अटके हुए सारे ना जाने आज चाँद भी कहाँ खो गया फलक का अँधेरा भी दरिया पे सो गया रोता है हर शै कि आज क्या हो गया शज़र के शाखों पे नशेमन की ख़ामोशी फैली है पंछियों में ये कैसी उदासी क्यूँ लग रही हर चीज़ आज जुदा सी बजती है सन्नाटे में झिंगुरों की झनक या टूट रही है तेरी चूड़ियों की खनक आती है आहटों से जख्मों की झलक ये रात कब बीतेगी मेरी जवानी की कब ख़त्म होगी कड़ियाँ मेरी कहानी की कब लाएगी तू खुशियाँ जिंदगानी की
तन्हाइयों के गम आँखो से बहे जाते हैं कुछ बात है दर्द में जो यूँ जीए जाते हैं बहुत है तमन्ना कि एक मुस्कान चेहरे पे खिले मगर तेरी उम्मीद में हम उदास हुए जाते हैं सबको ऐतराज है दुनिया में मेरी फितरत पे कि क्यूँ मैं तुमपे ये जाँनिसार करता हूँ लोग कहते हैं कि सैकड़ों परियाँ हैं यहाँ फिर जुदा होके क्यूँ तेरा इंतजार करता हूँ दुनिया ये नहीं जानती कि जिनको दर्द होता है वो जिस्म से नहीं, दिल से प्यार करते हैँ और ऐसा दिल लाखों में किसी एक में रहता है जिसमें दर्द होता है, वो सच्चा प्यार करते हैं
सीने की गहराइयों में मुहब्बत जिंदा दफन है उसपे बिछा मेरे जिस्म का सादा कफन है ये मौत जिंदगी के करीब ले आई है और जिंदगी में अब तू ही तू समाई है अपना ही साया है ये रात का अँधेरा भी अपना ही अक्स है ये चाँद का चेहरा भी आज जहाँ भी रहूँ जमीं-आस्मा बदलती नहीं शहर की रौनक से मेरी तबियत बहलती नहीं घर-शहर-देश की सरहदें मैं नहीं जानता मैं जानता हूँ बस तेरे दर्दे-मुहब्बत को और आँसू के उन सच्चे कतरों को जिसे मैंने तेरी प्यासी उदासी में देखा है तेरे उजड़े हुए बाल और मरता सा बदन मुझे याद है बस एक जोगन जो तेरे जैसी है
जख़्म दर जख़्म हम पाते गए कुछ न कुछ हर दर्द हर गम पे गाते गए कुछ न कुछ जो मुझे एक पल की खुशी दे न सके वो हर पल सितम ढ़ाते गए कुछ न कुछ हर मंजिल पे एक किनारा दिखता था मगर उसके बाद एक रोता समंदर भी रहता था हम नहीं गए उस किनारे पे दिल के लिए जहाँ आँसू न थे पहले से कुछ न कुछ मेरी मुंतज़िर निग़ाहों को हुस्न का रूप मिला मेरे बेकरार रूह को दर्द का धूप मिला चाँद तो बस दूर से ही नूर को बिखराती रही मगर देती रही बुझते चिराग को कुछ न कुछ हमें अफसोस नहीं कि तुझे देखा नहीं जी भर के तेरी तस्वीर तो तेरे आने से पहले सीने में थी तू आके बस दरस दिखा के गुजर गई अब उम्रभर तेरे बारे सोचना है कुछ न कुछ
चल पड़ा हूँ किधर, जबसे छूटा है घर और बिछड़ा है मेरा हसीं हमसफर चल पड़ा हूँ किधर, जाने कौन शहर अपने साये से रुखसत हुआ था कभी जब दीये बुझ गए मुफ़लिसी में सभी अब अंधेरे में रहता हूँ आठों पहर चल पड़ा हूँ किधर, जाने कौन शहर कोशिशें की बहुत, हौसले थे मगर हो गया चाक मेरा ये नाज़ुक जिगर फिर भी मिल न सका इश्क में रहगुज़र चल पड़ा हूँ किधर, जाने कौन शहर सागर से उठे थे धुएँ की तरह फिर हवा में उड़े पंछियों की तरह और घटा बनके एक दिन बरसी नज़र चल पड़ा हूँ किधर, जाने कौन शहर
आजमा कर देखिए हर शख्स को दुनिया में वो पहले वफा दिखाते हैं, फिर दगा करते हैं वफा करते हैं ताकि ऐतबार वो पा ले आपका फिर बेवफाई का फर्ज वो अदा करते हैं वो अपना काम निकालते हैं कुछ इस हुनर से कि आप धोखे खाकर भी उनसे मिला करते हैं आपकी जान कब वो लेगा, ये खबर नहीं आपको और आप उनकी सलामती की दुआ करते हैं एक दिन दिल तोड़ता है वो शख्स मुस्कुराकर रो-रो के तब खुद ही से आप गिला करते हैं होता है तज़रबा ऐसा कि दुनिया की राह पे आदमी से बच-बच कर आप चला करते हैं परायों को तो खैर आप दुश्मन समझते ही हैं अपनों से भी डर-डर कर रहा करते हैं कोसते रहते हैं अपनी जिंदगी को उम्रभर भीड़ में हंसते हैं मगर तन्हाई में रोया करते हैं
हम रोने का हुनर सीख गए तुम आकर आँसू में भींज गए मेरे जज़्बात के हर कतरे में तुम बहने की अदाएँ सीख गए फिजा की बिखरी यादों में फूलों में सँवरे काँटों में कायनात के दर्द की सोहबत में हम जीना-मरना सीख गए शाम की धुंधली राहों पर गम की अँधेरी रातों पर ख्वाब के टूटे शीशों पर मुस्कुरा के चलना सीख गए जख़्म के पहलू में सोकर नग़मों को कागज पे लिखकर अपनों के प्यार से दूर होकर हम जीवन जीना सीख गए
बैठे हैं दिल में ये अरमां जगाये,के वो आज नजरों से अपनी पिलाये ।मजा तो तब ही पीने का यारो,इधर हम पियें और नशा उनको आये ।।
मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नही हूँ मैं.. मंज़िल से जरा कह दो, अभी पहुंचा नही हूँ मैं.. कदमो को बाँध न पाएंगी, मुसीबत की जंजीरें.. रास्तों से ज़रा कह दो, अभी भटका नही हूँ मैं.. सब्र का बाँध टूटेगा, तो फ़ना कर के रख दूंगा.. दुश्मन से जरा कह दो, अभी गरजा नही हूँ मैं.. दिल में छुपा के रखी है, लड़कपन की चाहतें.. मोहब्बत से जरा कह दो, अभी बदला नही हूँ मैं.. साथ चलता है, दुआओ का काफिला.. किस्मत से ज़रा कह दो, अभी तनहा नही हूँ मैं ।