जख़्म दर जख़्म हम पाते गए कुछ न कुछ हर दर्द हर गम पे गाते गए

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जख़्म दर जख़्म हम पाते गए कुछ न कुछ हर दर्द हर गम पे गाते गए कुछ न कुछ जो मुझे एक पल की खुशी दे न सके वो हर पल सितम ढ़ाते गए कुछ न कुछ हर मंजिल पे एक किनारा दिखता था मगर उसके बाद एक रोता समंदर भी रहता था हम नहीं गए उस किनारे पे दिल के लिए जहाँ आँसू न थे पहले से कुछ न कुछ मेरी मुंतज़िर निग़ाहों को हुस्न का रूप मिला मेरे बेकरार रूह को दर्द का धूप मिला चाँद तो बस दूर से ही नूर को बिखराती रही मगर देती रही बुझते चिराग को कुछ न कुछ हमें अफसोस नहीं कि तुझे देखा नहीं जी भर के तेरी तस्वीर तो तेरे आने से पहले सीने में थी तू आके बस दरस दिखा के गुजर गई अब उम्रभर तेरे बारे सोचना है कुछ न कुछ

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