सीने की गहराइयों में मुहब्बत जिंदा दफन है
उसपे बिछा मेरे जिस्म का सादा कफन है
ये मौत जिंदगी के करीब ले आई है
और जिंदगी में अब तू ही तू समाई है
अपना ही साया है ये रात का अँधेरा भी
अपना ही अक्स है ये चाँद का चेहरा भी
आज जहाँ भी रहूँ जमीं-आस्मा बदलती नहीं
शहर की रौनक से मेरी तबियत बहलती नहीं
घर-शहर-देश की सरहदें मैं नहीं जानता
मैं जानता हूँ बस तेरे दर्दे-मुहब्बत को
और आँसू के उन सच्चे कतरों को
जिसे मैंने तेरी प्यासी उदासी में देखा है
तेरे उजड़े हुए बाल और मरता सा बदन
मुझे याद है बस एक जोगन जो तेरे जैसी है