पप्पू: पापा, आप इंजीनियर कैसे बने? संता: उसके लिए बहुत दिमाग की जरुरत पड़ती है। पप्पू: हां पता है, इसीलिए मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप कैसे इंजीनियर बने?
पप्पू की माँ पप्पू को डाँटते हुए, "तू हमेशा ख़राब बच्चों के साथ खेलता है, अच्छे बच्चों के साथ क्यों नहीं खेलता?" पप्पू: कैसे खेलूं, अच्छे बच्चों की मम्मी उन्हें मेरे साथ खेलने से मना कर देती है!
संता (पप्पू से बोला): पप्पू, एक अच्छा शीशा लेकर आओ जिसमें मेरा चेहरा दिखाई दे। पप्पू: पापा! अभी-अभी मैं सब दुकानों पर देखकर आया, सबमें मेरा चेहरा ही दिख रहा था।
पप्पू अपने घर गया और घर की घंटी बजाई। तो अंदर से उसकी बहन पिंकी बोली: कौन? पप्पू: मैं। पिंकी: मैं कौन? पप्पू: तुम पिंकी... और कौन, पगली।
पप्पू अपने पिता संता से: क्या बताऊ पापा, सामने वाले मकान मे एक लड़की हर रोज़ खिड़की में से रुमाल हिलाती है पर खिड़की का शीशा कभी नही खोलती। संता: बहको मत बेटे, वह तुझे देख कर रुमाल नही हिलाती। दरअसल वह इस मकान की नौकरानी है जो रोज़ खिड़की के शीशे साफ करती है।
पप्पू: पापा, आप इंजीनियर कैसे बने? संता: उसके लिए बहुत दिमाग की जरुरत पड़ती है। पप्पू: इसीलिए तो पूछ रहा हूँ क्योंकि मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप कैसे इंजीनियर बने?