इक उम्र से हूँ लज़्जत-ए-गिरिया से महरूम SHARE FacebookTwitter इक उम्र से हूँ लज़्जत-ए-गिरिया से महरूमऐ राहत-ए-जाँ मुझ को मनाने के लिये आलज़्ज़त-ए-गिरिया: रोने के सुमहरूम: वंचिराहत-ए-जाँ: जो जान को सुख दे, प्रियेसMore SHARE FacebookTwitter Tagsराहत इन्दौरी शायरी
इक उम्र से हूँ लज़्जत-ए-गिरिया से महरूम; ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को मनाने के लिये आ!.......Read Full Shayari