मुमकिन है कि तु..मुमकिन है कि तु जिसको समझता है बहाराँऔरों की निगाहों में वो मौसम हो ख़िज़ाँ काहै सिल-सिला एहवाल का हर लहजा दगरगूँअए सालेक-रह फ़िक्र न कर सूदो-ज़याँ काशायद के ज़मीँ है वो किसी और जहाँ कीतु जिसको समझता है फ़लक अपने जहाँ का
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