सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर..सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैंहाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैंहै मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलीलजिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैंबज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न होतू तो इक तस्वीर है महफ़िल की और महफ़िल हूँ मैंढूँढता फिरता हूँ ऐ 'इक़बाल' अपने आप कोआप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
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