तुम्हारी राह में..तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आतेइसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आतेमोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी हैये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आतेजिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने काउन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आतेख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखनाबुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आतेबिसात-ए-इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आतायह और बात कि बचने के घर नहीं आते'वसीम' जहन बनाते हैं तो वही अख़बारजो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
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