कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता

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कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता
तर्क-ए-दुनिया का ये दावा है फ़ुज़ूल ऐ ज़ाहिद
बार-ए-हस्ती तो ज़रा सर से उतारा होता
वो अगर आ न सके मौत ही आई होती
हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता
ज़िन्दगी कितनी मुसर्रत से गुज़रती या रब
ऐश की तरह अगर ग़म भी गवारा होता
अज़मत-ए-गिर्या को कोताह-नज़र क्या समझें
अश्क अगर अश्क न होता तो सितारा होता
कोई हम-दर्द ज़माने में न पाया 'अख़्तर'
दिल को हसरत ही रही कोई हमारा होता

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