उक़ाबी शान से झपटे थे जो..उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर निकलेसितारे शाम को ख़ून-ए-फ़लक़ में डूबकर निकलेहुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेरे-दरिया तैरने वालेतमाचे मौज के खाते थे जो बनकर गुहर निकलेगुब्बार-ए-रहगुज़र हैं कीमिया पर नाज़ था जिनकोजबीनें ख़ाक पर रखते थे जो अक्सीरगर निकलेहमारा नर्म-रौ क़ासिद पयामे-ज़िन्दगी लायाख़बर देतीं थीं जिनको बिजलियाँ वो बेख़बर निकलेजहाँ में अहले-ईमाँ सूरत-ए-ख़ुर्शीद जीते हैंइधर डूबे उधर निकले, उधर डूबे इधर निकले
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