आज भड़की रग-ए-वहशत तेरे दीवानों कीक़िस्मतें जागने वाली हैं बयाबानों कीफिर घटाओं में है नक़्क़ारा-ए-वहशत की सदाटोलियाँ बंध के चलीं दश्त को दीवानों कीआज क्या सूझ रही है तिरे दीवानों कोधज्जियाँ ढूँढते फिरते हैं गरेबानों कीरूह-ए-मजनूँ अभी बेताब है सहराओं मेंख़ाक बे-वजह नहीं उड़ती बयाबानों कीउस ने 'एहसान' कुछ इस नाज़ से मुड़ कर देखादिल में तस्वीर उतर आई परी-ख़ानों की
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