जब भी कश्ती मेरी..जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती हैमाँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती हैरोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँरोज़ उँगली मेरी तेज़ाब में आ जाती हैदिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही नहींसोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती हैरात भर जागते रहने का सिला है शायदतेरी तस्वीर-सी महताब में आ जाती हैज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा ओढ़े हुएकूचा-ए-रेशम-ओ-कमख़्वाब में आ जाती हैदुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखेंसारी मिट्टी मेरे तालाब में आ जाती है
This is a great शायरी कश्ती पर. If you like मेरी खामोशी शायरी then you will love this. Many people like it for मेरी जिंदगी शायरी.