हर तरफ हर जगह

SHARE

हर तरफ हर जगह..
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाईयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन नया इतज़ार आदमी
हर तरफ भागते दौड़ते का शिकार आदमी
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी
ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र
आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी

This is a great आदमी पर शायरी. If you like शिकार पर शायरी then you will love this. Many people like it for सांस पर शायरी.

SHARE