कब वो ज़ाहिर होगा..कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझेजितनी भी मुश्किल में हूँ आसान कर देगा मुझेरू-ब-रू कर के कभी अपने महकते सुर्ख होंठएक दो पल के लिए गुलदान कर देगा मुझेरूह फूँकेगा मोहब्बत की मेरे पैकर में वोफिर वो अपने सामने बे-जान कर देगा मुझेख़्वाहिशों का खून बहाएगा सर-ए-बाज़ार-ए-शौक़और मुकम्मल बे-ए-सर-ओ-सामान कर देगा मुझेएक ना-मौजूदगी रह जाएगी चारों तरफ़रफ़्ता रफ़्ता इस क़दर सुनसान कर देगा मुझेया तो मुझ से वो छुड़ा देगा ग़ज़ल-गोई 'ज़फ़र'या किसी दिन साहब-ए-दीवान कर देगा मुझे
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