अब कौन से मौसम से..अब कौन से मौसम से कोई आस लगाएबरसात में भी याद जब न उनको हम आएमिटटी की महक साँस की ख़ुश्बू में उतर करभीगे हुए सब्जे की तराई में बुलाएदरिया की तरह मौज में आई हुई बरखाज़रदाई हुई रुत को हरा रंग पिलाएबूँदों की छमाछम से बदन काँप रहा हैऔर मस्त हवा रक़्स की लय तेज़ कर जाएहर लहर के पावों से लिपटने लगे घूँघरूबारिश की हँसी ताल पे पाज़ेब जो छनकाएअंगूर की बेलों पे उतर आए सितारेरुकती हुई बारिश ने भी क्या रंग दिखाए
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