और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायदघर बनाने की मिलीं हम को सज़ाएँ शायदभर गए ज़ख़्म मसीहाई के मरहम के बग़ैर,माँ ने की हैं मिरे जीने की दुआएँ शायदमैं ने कल ख़्वाब में ख़ुद अपना लहू देखा हैटल गईं सर से मिरे सारी बलाएँ शायदमैं ने कल जिन को अंधेरों से दिलाई थी नजातअब वह लोग मिरे दिल को जलाएँ शायदफिर वही सर है वहीं संग-ए-मलामत उस कादर-गुज़र कर दीं मिरी उस ने ख़ताएँ शायदइस भरोसे पे खिला है मिरा दरवाज़ा 'रईस'रूठने वाले कभी लौट के आएँ शायद
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