शायद अभी है राख में कोई

SHARE

शायद अभी है राख में कोई..
शायद अभी है राख में कोई शरार भी
क्यों इंतज़ार भी है इज़्तिरार भी
ध्यान आ गया है मर्ग-ए-दिल-ए-नामुराद का
मिलने को मिल गया है सुकूँ भी क़रार भी
अब ढूँढने चले हो मुसाफ़िर को दोस्तो
हद-ए-निगाह तक न रहा जब ग़ुबार भी
हर आस्ताँ पे नासियाफ़र्सा हैं आज वो
जो कल न कर सके थे तेरा इन्तज़ार भी
इक राह रुक गई तो ठिठक क्यों गई आद
आबाद बस्तियाँ हैं पहाड़ों के पार भी

This is a great तेरा इंतज़ार शायरी. If you like तेरा इंतजार शायरी then you will love this. Many people like it for तेरा एहसास शायरी.

SHARE