शायद अभी है राख में कोई..शायद अभी है राख में कोई शरार भीक्यों इंतज़ार भी है इज़्तिरार भीध्यान आ गया है मर्ग-ए-दिल-ए-नामुराद कामिलने को मिल गया है सुकूँ भी क़रार भीअब ढूँढने चले हो मुसाफ़िर को दोस्तोहद-ए-निगाह तक न रहा जब ग़ुबार भीहर आस्ताँ पे नासियाफ़र्सा हैं आज वोजो कल न कर सके थे तेरा इन्तज़ार भीइक राह रुक गई तो ठिठक क्यों गई आदआबाद बस्तियाँ हैं पहाड़ों के पार भी
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