अपने पहाड़ ग़ैर के...अपने पहाड़ ग़ैर के गुलज़ार हो गयेवे भी हमारी राह की दीवार हो गयेफल पक चुका है शाख़ पर गर्मी की धूप मेंहम अपने दिल की आग में तैयार हो गयेहम पहले नर्म पत्तों की इक शाख़ थे मगरकाटे गये हैं इतने कि तलवार हो गयेबाज़ार में बिकी हुई चीजों की माँग हैहम इस लिये ख़ुद अपने ख़रीदार हो गयेताजा लहू भरा था सुनहरे गुलाब मेंइन्कार करने वाले गुनहगार हो गयेवो सरकशों के पाँव की ज़ंजीर थे कभीअब बुज़दिलों के हाथ में तलवार हो गये
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