मियाँ मैं शेर हूँ

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मियाँ मैं शेर हूँ..
मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती
मैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जाती
जहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा है
जहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जाती
मोहब्बत का ये ज़ज्बा जब ख़ुदा की देन है भाई
तो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट नहीं जाती
वो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है मगर
न जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट नहीं जाती

This is a great अजीब दुनिया शायरी. If you like मेरे अपने शायरी then you will love this. Many people like it for मेरे अश्क शायरी.

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