तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत

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तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत..
तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत से अगर नफ़रत है
तूने होठों के लरज़ने को तो रोका होता
बे-नियाज़ी से, मगर कांपती आवाज़ के साथ
तूने घबरा के मेरा नाम न पूछा होता
तेरे बस में थी अगर मशाल-ए-जज़्बात की लौ
तेरे रुख्सार में गुलज़ार न भड़का होता
यूं तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें
अपने टूटे हुए फ़िरक़ों को तो परखा होता
यूं ही बेवजह ठिठकने की ज़रूरत क्या थी
दम-ए-रुख्सत में अगर याद न आया होता

This is a great आवाज़ पर शायरी. If you like क्या कहु शायरी then you will love this. Many people like it for मेरा गाँव शायरी.

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