यहाँ किसी को भी..यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिलाकिसी को हम न मिले और हम को तू न मिलाग़ज़ाल-ए-अश्क सर-ए-सुब्ह दूब-ए-मिज़गाँ परकब आँख अपनी खुली और लहू लहू न मिलाचमकते चाँद भी थे शहर-ए-शब के ऐवाँ मेंनिगार-ए-ग़म सा मगर कोई शम्मा-रू न मिलाउन्ही की रम्ज़ चली है गली गली में यहाँजिन्हें उधर से कभी इज़्न-ए-गुफ़्तुगू न मिलाफिर आज मय-कदा-ए-दिल से लौट आए हैंफिर आज हम को ठिकाने का हम-सबू न मिला
This is a great किसी की चाहत शायरी.