सोज़ में भी वही इक नग़्मा है..सोज़ में भी वही इक नग़्मा है जो साज़ में हैफ़र्क़ नज़दीक़ की और दूर की आवाज़ में हैये सबब है कि तड़प सीना-ए-हर-साज़ में हैमेरी आवाज़ भी शामिल तेरी आवाज़ में हैजो न सूरत में न म'आनी में न आवाज़ में हैदिल की हस्ती भी उसी सिलसिला-ए-राज़ में हैआशिकों के दिले-मजरूह से कोई पूछेवो जो इक लुत्फ़ निगाहे-ग़लत -अंदाज़ में हैगोशे-मुश्ताक़ की क्या बात है अल्लाह-अल्लाहसुन रहा हूँ मैं जो नग़्मा जो अभी साज़ में है
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