माना कि आदमी को

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माना कि आदमी क
माना कि आदमी को हँसाता है आदमी
इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी
माना गले से सब को लगाता है आदमी
दिल में किसी-किसी को बिठाता है आदमी
सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुख में हमेशा शोर मचाता है आदमी
हर आदमी की ज़ात अजीब-ओ-गरीब है
कब आदमी को दोस्तो! भाता है आदमी
दुनिया से ख़ाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी

This is a great आदमी पर शायरी. If you like आम आदमी शायरी then you will love this.

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