दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैं

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दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैं
जनाब महफ़िल में आते ही नहीं हैं
हम सजाते हैं महफ़िल हर शाम
एक वो हैं जो कभी तशरीफ़ लाते ही नहीं हैं

This is a great जनाब शायरी. If you like दस्तूर शायरी then you will love this.

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