दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैंदस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैंजनाब महफ़िल में आते ही नहीं हैंहम सजाते हैं महफ़िल हर शामएक वो हैं जो कभी तशरीफ़ लाते ही नहीं हैं