ज़ख्म देने की आदत नहीं हमकोज़ख्म देने की आदत नहीं हमकोहम तो आज भी वो एह्साह रखते हैंबदले-बदले तो आप हैं जनाबहमारे आलावा सबको याद रखते हैं
दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैंदस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैंजनाब महफ़िल में आते ही नहीं हैंहम सजाते हैं महफ़िल हर शामएक वो हैं जो कभी तशरीफ़ लाते ही नहीं हैं