तिरछी नज़र शायरी

खुलेगी इस नज़र पे

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बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये

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नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो क्या होगा

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ज़ंजीर से उठती है सदा सहमी हुई सी

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