ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गएऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गएवो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गएवीराँ हैं सहन-ओ-बाग़ बहारों को क्या हुआवो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गएहै नज्द में सुकूत हवाओं को क्या हुआलैलाएँ हैं ख़मोश दिवाने किधर गएउजड़े पड़े हैं दश्त ग़ज़ालों पे क्या बनीसूने हैं कोहसार दिवाने किधर गए.वो हिज्र में विसाल की उम्मीद क्या हुईवो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गएदिन रात मैकदे में गुज़रती थी ज़िन्दगी'अख़्तर' वो बेख़ुदी के ज़माने किधर गए
महल तेरी उम्मीद का ढहने नहीं दियामहल तेरी उम्मीद का ढहने नहीं दियाग़म ज़ुदा हूँ मैं, किसी को कहने नहीं दियाना हो यकीं तो पूछ लो इन आँखों सेएक आंसू भी आँखों से बहने नहीं दिया
यूँ ही उम्मीद दिलाते हैं ज़माने वालेयूँ ही उम्मीद दिलाते हैं ज़माने वालेकब लौट के आते हैं छोड़ कर जाने वाले
आज तक है उसके लौट आने की उम्मीदआज तक है उसके लौट आने की उम्मीदआज तक ठहरी है ज़िंदगी अपनी जगहलाख ये चाहा कि उसे भूल जायेँ परहौंसले अपनी जगह बेबसी अपनी जगह
अपने सीने से लगाए हुए उम्मीद की लाशअपने सीने से लगाए हुए उम्मीद की लाश;मुद्दतों जीस्त को नाशाद किया है मैंने;तूने तो एक ही सदमे से किया था दो-चार;दिल को हर तरह से बर्बाद किया है मैंने
उम्मीद तो मंज़िल पे पहुँचने की बड़ी थीउम्मीद तो मंज़िल पे पहुँचने की बड़ी थी, तक़दीर मगर न जाने कहाँ सोयी पड़ी थीखुश थे कि गुजारेंगे रफाकत में सफ़र, तन्हाई मगर अब बाहों को फैलाये खड़ी थी