मियाँ मैं शेर हूँमियाँ मैं शेर हूँ..मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जातीमैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जातीमैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा थामैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जातीजहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा हैजहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जातीमोहब्बत का ये ज़ज्बा जब ख़ुदा की देन है भाईतो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट नहीं जातीवो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है मगरन जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट नहीं जाती
वो कभी मिल जाएँ तोवो कभी मिल जाएँ तो..वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिएरात दिन सूरत को देखा कीजिएचाँदनी रातों में एक एक फूल कोबे-ख़ुदी कहती है सजदा कीजिएजो तमन्ना बर न आए उम्र भरउम्र भर उस की तमन्ना कीजिएइश्क़ की रंगीनियों में डूब करचाँदनी रातों में रोया कीजिएहम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थेक्यों किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिएकहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेरइस तरह हम को न रुसवा कीजिए