कहाँ क़ातिल बदलते हैंकहाँ क़ातिल बदलते हैं..कहाँ क़ातिल बदलते हैं फ़क़त चेहरे बदलते हैंअजब अपना सफ़र है फ़ासले भी साथ चलते हैंबहुत कमजर्फ़ था जो महफ़िलों को कर गया वीराँन पूछो हाले चाराँ शाम को जब साए ढलते हैंवो जिसकी रोशनी कच्चे घरों तक भी पहुँचती हैन वो सूरज निकलता है, न अपने दिन बदलते हैंकहाँ तक दोस्तों की बेदिली का हम करें मातमचलो इस बार भी हम ही सरे मक़तल निकलते हैंहम अहले दर्द ने ये राज़ आखिर पा लिया 'जालिब'कि दीप ऊँचे मकानों में हमारे खून से जलते हैं
अब कौन से मौसम सेअब कौन से मौसम से..अब कौन से मौसम से कोई आस लगाएबरसात में भी याद जब न उनको हम आएमिटटी की महक साँस की ख़ुश्बू में उतर करभीगे हुए सब्जे की तराई में बुलाएदरिया की तरह मौज में आई हुई बरखाज़रदाई हुई रुत को हरा रंग पिलाएबूँदों की छमाछम से बदन काँप रहा हैऔर मस्त हवा रक़्स की लय तेज़ कर जाएहर लहर के पावों से लिपटने लगे घूँघरूबारिश की हँसी ताल पे पाज़ेब जो छनकाएअंगूर की बेलों पे उतर आए सितारेरुकती हुई बारिश ने भी क्या रंग दिखाए
बड़ा वीरान मौसम हैबड़ा वीरान मौसम है..बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओहर एक जानिब तेरा ग़म है कभी मिलने चले आओहमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में हैहमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओमेरे हम-राह अगरचे दूर तक लोगों की रौनक़ हैमगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओतुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों कोतुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओअँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तनहा दिलदिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओहवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती हैतेरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ
बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओबड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओहर एक जानिब तेरा ग़म है कभी मिलने चले आओहमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में हैहमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओमेरे हम-राह अगरचे दूर तक लोगों की रौनक़ हैमगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओतुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों कोतुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओअँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तनहा दिलदिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओहवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती हैतेरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ
कुछ हिज्र के मौसमकुछ हिज्र के मौसम..कुछ हिज्र के मौसम ने सताया नहीं इतनाकुछ हम ने तेरा सोग मनाया नहीं इतनाकुछ तेरी जुदाई की अज़िय्यत भी कड़ी थीकुछ दिल ने भी ग़म तेरा मनाया नहीं इतनाक्यों सब की तरह भीग गई हैं तेरी पलकेंहम ने तो तुझे हाल सुनाया नहीं इतनाकुछ रोज़ से दिल ने तेरी राहें नहीं देखींक्या बात है तू याद भी आया नहीं इतनाक्या जानिए इस बे-सर-ओ-सामानी-ए-दिल नेपहले तो कभी हम को रुलाया नहीं इतना
ऐसे हिज्र के मौसमऐसे हिज्र के मौसम..ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैंतेरे अलावा याद हमें सब आते हैंजज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों कोतेरा दामन तर करने अब आते हैंअब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरनाहम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैंजागती आँखों से भी देखो दुनिया कोख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैंकाग़ज़ की कश्ती में दरिया पार कियादेखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं