बुझी नज़र तो करिश्मे भीबुझी नज़र तो करिश्मे भी..बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गयेकि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गयेकरेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिलायही है रस्म-ए-ज़माना तो हम भी अब के गयेमगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जानाये और बात कि हम साथ साथ सब के गयेअब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लियेये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गयेगिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारागिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गयेतुम अपनी शम-ए-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़'इन आँधियों मे तो प्यार-ए-चिराग सब के गये
बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गयेबुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गयेकि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गयेकरेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिलायही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गयेमगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जानाये और बात कि हम साथ साथ सब के गयेअब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिएये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गयेगिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारागिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गयेतुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़'इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये
खुलेगी इस नज़र पेखुलेगी इस नज़र पे..खुलेगी इस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ताकिया जाता है पानी में सफ़र आहिस्ता आहिस्ताकोई ज़ंजीर फिर वापस वहीं पर ले के आती हैकठिन हो राह तो छूटता है घर आहिस्ता आहिस्ताबदल देना है रास्ता या कहीं पर बैठ जाना हैकि थकता जा रहा है हमसफ़र आहिस्ता आहिस्ताख़लिश के साथ इस दिल से न मेरी जाँ निकल जायेखिंचे तीर-ए-शनासाई मगर आहिस्ता आहिस्तामेरी शोला-मिज़ाजी को वो जंगल कैसे रास आयेहवा भी साँस लेती हो जिधर आहिस्ता आहिस्ता
खुलेगी इस नज़र पेखुलेगी इस नज़र पे..खुलेगी इस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ताकिया जाता है पानी में सफ़र आहिस्ता आहिस्ताकोई ज़ंजीर फिर वापस वहीं पर ले के आती हैकठिन हो राह तो छूटता है घर आहिस्ता आहिस्ताबदल देना है रास्ता या कहीं पर बैठ जाना हैकि थकता जा रहा है हमसफ़र आहिस्ता आहिस्ताख़लिश के साथ इस दिल से न मेरी जाँ निकल जायेखिंचे तीर-ए-शनासाई मगर आहिस्ता आहिस्तामेरी शोला-मिज़ाजी को वो जंगल कैसे रास आयेहवा भी साँस लेती हो जिधर आहिस्ता आहिस्ता
बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गयेबुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गयेकि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गयेकरेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिलायही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गयेमगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जानाये और बात कि हम साथ साथ सब के गयेअब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिएये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गयेगिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारागिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गयेतुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़'इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ मेंकभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ मेंकि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में