जीवन को प्रेरणा देने वाले विचार

एक बार पूरा अवश्य पढ़े ! गाय हूँ, मैं गाय हूँ, इक लुप्त-सा अध्याय हूँ। लोग कहते माँ मुझे पर मैं बड़ी असहाय हूँ।। दूध मेरा पी रहे सब, और ताकत पा रहे। पर हैं कुछ पापी यहाँ जो, माँस मेरा खा रहे। देश कैसा है जहाँ, हर पल ही गैया कट रही। रो रही धरती हमारी, उसकी छाती फट रही। शर्म हमको अब नहीं है, गाय-वध के जश्न पर, मुर्दनी छाई हुई है, गाय के इस प्रश्न पर। मुझको बस जूठन खिला कर, पुन्य जोड़ा जा रहा, जिंदगी में झूठ का, परिधान ओढ़ा जा रहा। कहने को हिंदू हैं लेकिन, गाय को नित मारते। चंद पैसों के लिये, ईमान अपना हारते। चाहिए सब को कमाई, बन गई दुनिया कसाई। माँस मेरा बिक रहा मैं, डॉलरों की आय हूँ।। मेरे तन में देवताओं का, सुना था वास है। पर मुझे लगता है अब तो, बात यह बकवास है। कैसे हैं वे देव जो, कटते यहाँ दिन-रात अब, झूठ कहना बंद हो, पचती नहीं यह बात अब। मर गई है चेतना, इस दौर को धिक्कार है। आदमी को क्या हुआ, फितरत से शाकाहार है। ओ कन्हैया आ भी जाओ, गाय तेरी रो रही। कंस के वंशज बढ़े हैं, पाप उनके ढो रही। जानवर घबरा रहे हैं, हर घड़ी इनसान से। स्वाद के मारे हुए, पशुतुल्य हर नादान से। खून मेरा मत बहाओ, दूध मेरा मत लजाओ। बिन यशोदा माँ के अब तो, भोगती अन्याय हूँ।। मैं भटकती दर-ब-दर, चारा नहीं, कचरा मिले, कामधेनु को यहाँ बस, जहर ही पसरा मिले। जहर खा कर दूध देती, विश्वमाता हूँ तभी, है यही इच्छा रहे, तंदरुस्त दुनिया में सभी। पालते हैं लोग कुत्ते और बिल्ली चाव से, रो रहा है मन मेरा, हर पल इसी अलगाव से। डॉग से बदतर हुई है, गॉड की सूरत यहाँ, सोच पश्चिम की बनी है इसलिए आफत यहाँ। खो गया गोकुल हमारा, अब कहाँ वे ग्वाल हैं, अब तो बस्ती में लुटेरे, पूतना के लाल हैं। देश को अपने जगाएँ, गाँव को फौरन बचाएँ। हो रही है नष्ट दुनिया, मैं धरा की हाय हूँ।। गाय हूँ मैं गाय हूँ ….!

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