एकदा दादा कोंडकेला एक हिंदी फिल्म प्रोडुस आणि डिरेक्ट करण्याची संधी मिळते. मुळचा मराठी माणूस पण आता हिंदी फिल्म प्रोडुस करायच त्यामुळे दादा कोंडके ला फिल्म चे नाव काय ठेवायचे हे सुचत नाही. खूप विचार करून त्याला एक अशक्य नाव सुचते. असे नाव ज्याचे मराठी आणि हिंदी दोन्ही मध्ये काहीतरी अर्थ होतो असे. त्यांना काय सुचला माहित आहे का? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? फिल्मच नाव बदला लुंगी.
अगर फिल्मों को पीने के नाम से बनाया जाए तो उनके नाम निम्नलिखित होंगे: 1. सोडा अकबर 2. सब ने पिला दी थोड़ी 3. रम दे बसंती 4. हम टाइट हो चुके सनम 5. बियर ज़ारा 6. बेवड़े ज़मीन पर 7. एक था बैगपाइपर 8. रम मारो रम 9. मैंने ड्रिंक तुझको दिया 10. दारु दास 12. पैग लिया तो चकना क्या 13. उलटी कर दी आपने
मुझे इतनी "फुर्सत" कहाँ कि मैँ तकदीर का लिखा देखुँ., बस अपनी माँ की "मुस्कुराहट" देखकर समझ जाता हुँ. की "मेरी तकदीर" बुलँद है.
जकड़ती जन्जीरों का दोष नहीं मैंने हाथों की लकीर को कातिल कहा है जिसने माँग लिया तुझको मुझसे मैंने उस फकीर को कातिल कहा है किसी इन्साँ को क्या दोष दूँ मैं किसी इन्साँ को क्या दोष दूँ मैं मैंने लिखकर तकदीर लूटने वाले उस अमीर को कातिल कहा है.
"कही सुनी पे बोहत एतबार करने लगे मेरे ही लोग मुझे संगसार* करने लगे पुराने लोगों के दिल भी हैं खुशबुओं की तरह ज़रा किसी से मिले, एतबार करने लगे.
चला चला रे डलेवर गाडी होले-होले । अंजन की सीटी मे म्हारो मन डोले । अलवर सु जब गाडी चाली मे बेठी थी सुधी । बडो जोर को झटको लाग्योँ जब मे हो गई ऊँधी ॥ चला चला.... बीजली को पंखो चाले गुँज रहयो भोरोँ । बैठ रेल मे गावेँ लाग्यो और छोटो सो छोरो ॥ डुँगर भागे नदी भागे ओर भागे खेत । ढोढाँ की तो टोली भागे उडे रेत ही रेत ॥ चला चला रे...... बडी जोर को चाले इंजन देवे जोर की सीटी । डब्बा-डब्बा घुम रहयो है टोपी वालो टीटी ॥ चला चला रे----
मीत- अगर मैं नारियल के पेड़ पर चढ़ जाँऊ तो मुझे इन्जीनियरिंग कॉलेज की लड़कियाँ दिख जाएंगी? गीत- हाँ ज़रूर, और हाथ छोड़ देना तो मेडिकल कॉलेज की लड़कियाँ दिख जाएंगी।
गीत सड़क के किनारे बैठा था- मीत- क्यों वक़्त बर्बाद कर रहे हो? गीत- बदला ले रहा हूँ। मीत- किससे? गीत – वक़्त से। वक़्त ने मुझे बर्बाद किया मैं वक़्त को बर्बाद कर रहा য839ूँ।