संता : सुनती हो, मेरी माँ आई है। जीतो: तो कौनसी नयी बात हैं उनका तो रोज़ का ही काम है, अब क्यों आयी हैं? संता : अरे माँ पांच किलो प्याज भी लायी है। जीतो: आप भी ना पहले बोलना था ना माँ जी आयी है, बड़ी मुश्किल से तो बड़ों का प्यार और आशीर्वाद नसीब होता है।
प्रीतो मुस्कुरा के अपने पति बंता से बोली: जानते हो मैंने सोलह सोमवार केवल तुलसी के पत्ते खा कर काटे और दो साल हर शुक्रवार को व्रत किया तब कहीं जाकर आप को पति के रूप में पाया। बंता (हँसते हुए): अगर ये नहीँ करती तो क्या होता? प्रीतो: तो आप से भी गया गुजरा पल्ले पड़ जाता।
संता और जीतो की लडाई हो गई। आधा दिन चुपचाप गुजारने के बाद जीतो, संता के पास आई और बोली, "इस तरह झगड़ते अच्छे नही लगते। एक काम करते हैं, थोडा आप समझौता करो थोडा मैं करती हूँ।" संता: ठीक है। क्या करना है? जीतो: आप मुझसे माफी माँग लो और मैं आपको माफ कर देती हूँ।
प्रीतो: शादी के पहले तुम बहुत मंदिर जाते थे, अब क्या हो गया? बंता: फिर तुमसे शादी हो गई और मेरा भगवान पर से भरोसा ही उठ गया।
संता बालकनी में खड़ा मस्ती में गा रहा था,"पंछी बनूं, उड़ता फिरूं मस्त गगन में, आज मैं आज़ाद हूँ दुनिया के चमन में"। तभी रसोई में से जीतो की आवाज आई, "घर में ही उड़ो, सामने वाली मायके गई है।"
संता: देखो एक महान लेखक ने कहा है, 'पति को भी घर के मामले में बोलने का हक़ होना चाहिए'। जीतो: देखो, वो बेचारा भी सिर्फ लिख पाया, कह नहीं।