हवायें कहती है दोस्ती कर; फिजायें कहती हैं मस्ती कर; बहारें कहती हैं शादी कर; पर; घर वाले कहते हैं 'बकवास' बंद कर।
आप मन ही मन उन्हें चाहते रह गए; उन्हें पटाने का प्लॉन बनाते रह गए; पटाकर कोई और ले गया उनको; . . . . . . . और आप उनकी शादी के टैंट से कुत्ते भगाते रह गए।
मिर्ज़ा ग़ालिब भी क्या खूब कह गये हैं: जल्दबाज़ी में शादी करके सारा जीवन बिगाड़ लोगे; और सोच समझकर करोगे तो भी कौन सा 'तीर' मार लोगे।
पति: कई लोग अपना जन्मदिन अक्सर भूल जाते हैं, मगर शादी की तारीख नहीं भूलते, ऐसा क्यों? पत्नी: दुःख की घटना बहुत दिनों तक याद रहती है।
पत्नी: तुम ने कभी सोचा है कि मेरी शादी किसी और से हो जाती तो क्या होता? पति: नहीं, मैंने कभी किसी का बुरा नहीं सोचा!