हर क़दम पर हम समझते थे कि मंज़िल आ गयी SHARE FacebookTwitter हर क़दम पर हम समझते थे कि मंज़िल आ गयीहम क़दम पर इक नयी दरपेश मुश्किल आ गयीक़दम: पैदरपेश: सम्मुख, सामनMore SHARE FacebookTwitter Tagsकद शायरी