दिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा है

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दिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा है
भरी महफिल में सच बोलना अब जुर्म जैसा है
हर ज्यादती को सहन कर लो चुपचाप
शहर में इस तरह से चीखना जुर्म जैसा है

This is a great खिड़की पर शायरी. If you like जुर्म पर शायरी then you will love this.

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