दिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा हैदिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा हैभरी महफिल में सच बोलना अब जुर्म जैसा हैहर ज्यादती को सहन कर लो चुपचापशहर में इस तरह से चीखना जुर्म जैसा है
एक जुर्म हुआ है हम से एक यार बना बैठे हैंएक जुर्म हुआ है हम से एक यार बना बैठे हैंकुछ अपना उसको समझ कर सब राज़ बता बैठे हैंफिर उसकी प्यार की राह में दिल और जान गवा बैठे हैंवो याद बहुत आते हैं जो हुमको भुला बैठे हैं