मैंने कब चाहा कि..मैंने कब चाहा कि मैं उस की तमन्ना हो जाऊँये भी क्या कम है अगर उस को गवारा हो जाऊँमुझ को ऊँचाई से गिरना भी है मंज़ूर, अगरउस की पलकों से जो टूटे, वो सितारा हो जाऊँलेकर इक अज़्म उठूँ रोज़ नई भीड़ के साथफिर वही भीड़ छटे और मैं तनहा हो जाऊँजब तलक महवे-नज़र हूँ, मैं तमाशाई हूँटुक निगाहें जो हटा लूं तो तमाशा हो जाऊँमैं वो बेकार सा पल हूँ, न कोइ शब्द, न सुरवह अगर मुझ को रचाले तो हमेशा हो जाऊँआगही मेरा मरज़ भी है, मुदावा भी है 'साज़'जिस से मरता हूँ, उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ
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