मैंने पत्थरों को भी रोते देखा है झरने के रूप मेंमैंने पेड़ों को प्यासा देखा है सावन की धूप मेंघुल-मिल कर बहुत रहते हैं लोग जो शातिर हैं बहुतमैंने अपनों को तनहा देखा है बेगानों के रूप में
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