चढ़ा हुआ कलयुग का सूरज कितने और जलाओगे

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चढ़ा हुआ कलयुग का सूरज कितने और जलाओगे,
धरती की रक्षा की खातिर हे कृष्णा! तुम कब आओगे;
बुझा दिए अरमाँ लाखो है कितने और बुझाओगे,
फँसे हुए इस कालचक्र में कब तुम हमे बचाओगे;
जन्म से ही लग गया कलंक खुशियों का खो गया चमन,
काटों भरा हो गया जहाँ गुल तुम कब खिलाओगे;
मर चूका इंसान यहाँ पे भरे है बस हैवान,
पाठ पढ़ाने इंसानियत का जाने तुम कब आओगे।
हे कृष्णा तुम कब आओगे!

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