किस्सा एक पुराना दोस्तो लंका मे था रावण,
राजा एक महा अभिमानी कांपता जिससे कण-कण।
उस अभिमानी रावण ने था सबको खूब सताया,
रामचंद्र जब आये वन में सीता को हर लाया।
झलमल-झलमल सोने की लंका पैरो पर झुकती,
और काल की गति भी भाई उसके आगे रूकती।
सुंदर थी लंका, लंका में सोना ही सोना था,
लेकिन पुन्य नही, पापों का भरा हुआ दोना था।
तभी राम आए बन्दर भालू की लेकर सेना,
साध निशाना सच्चाई का तीर चलाया पैना।
लोभ-पाप की लंका धू-धू जलकर हो गई राख,
दीए जले थे तब धरती पर अनगीन, लाखों-लाख।
इसलिए तो आज धूम है रावण आज मरा था,
कटे शीश दस बारी-बारी उतरा भार धरा का।
लेकिन सोचो, कोई रावण फिर छल न कर पाए,
कोई अभिमानी न फिर से काला राज चलाए।
तब होगी सच्ची दीवाली होगा तभी दशहरा,
जगमग-जगमग होगा तब फिर सच्चाई का चेहरा।