आदमी ही आदमी को छल रहा है

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आदमी ही आदमी को छल रहा है, ये क्रम आज से नही, बरसों से चल रहा है रोज चौराहे पर होता है ” सीताहरण ” जबकि मुद्दतों से ‘रावण’ जल रहा है…!!

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