हमारी शख्सियत का अंदाज़ा तुम क्या लगाओगे ग़ालिब

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हमारी शख्सियत का अंदाज़ा तुम क्या लगाओगे ग़ालिब;
हम तो कब्रिस्तान से भी गुज़रते हैं तो मुर्दे उठ कर पूछते हैं, "कहीं नौकरी लगी क्या भाई साहब?"

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